Operation Lyari: कराची की काली गलियों में खौफ, गैंगस्टर्स का राज और लगातार गूंजती गोलियां, सिनेमाई नहीं, असली कहानी
बॉलीवुड फिल्म धुरंधर में जो अंडरवर्ल्ड (Underworld) दिखाया गया है, उसका एक असली और कहीं ज्यादा खौफनाक रूप कराची के ल्यारी इलाके में मौजूद था। फर्क बस इतना था कि फिल्म में कैमरा (Camera) चलता है, लेकिन ल्यारी में मौत (Death) चलती थी।
Operation Lyari की कहानी उसी सच, उसी रफ्तार (Pace) और उसी हिंसा (Violence) से भरी है, जिसने 20 साल तक कराची को झकझोर कर रखा।
कैसे बना ल्यारी ‘क्राइम हब’ (Crime Hub)?
1970–90 के दशक में जब ड्रग तस्करी (Drug Trafficking) बढ़ी, तब छोटे-छोटे गिरोह बनकर बड़े नेटवर्क में बदलने लगे। कलाकोट की गलियों से उभरे भाई शेरू और दादल ने नशीले पदार्थों का कारोबार फैलाया और देखते ही देखते राजनीतिक दल भी इन्हीं गैंग्स का इस्तेमाल स्थानीय कंट्रोल (Local Control) के लिए करने लगे।अपराध, राजनीति और जातीय पहचान (Ethnic Identity) का यह मिश्रण ल्यारी को एक समानांतर सत्ता (Parallel Power) बनाता गया।
रहमान डकैत: गैंगस्टर से ‘लोकल हीरो’ (Local Hero) बनने की कहानी
2000 के दशक में रहमान डकैत का नाम कराची के डर का दूसरा नाम बन चुका था।PPP के कई नेताओं ने उसे स्थानीय वोट बैंक (Vote Bank) संभालने का जिम्मा दिया और बदले में ड्रग्स, हथियार और वसूली (Extortion) पर खुली छूट मिल गई।छोटे अपराध कम कराकर उसने आम लोगों का भरोसा भी जीता, लेकिन जब वह बेहद शक्तिशाली हो गया, तो 2009 में पुलिस मुठभेड़ (Encounter) में उसे मार गिराया गया।
उजैर बलूच: नया ‘किंगपिन’ (Kingpin)
रहमान की मौत के बाद उसका चचेरा भाई उजैर बलूच पीपुल्स अमन कमेटी का प्रमुख बना। MQM से उसकी दुश्मनी ने टारगेट किलिंग (Target Killing) बढ़ा दी।हालाँकि 2011 में इस संगठन पर बैन लगा, लेकिन जमीन पर इसका प्रभाव कायम रहा। 2012 तक उजैर बलूच कराची की राजनीति और क्राइम वर्ल्ड (Crime World) का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन चुका था।
गैंगवार (Gang War) जिसने शहर को थर्रा दिया
उजैर बलूच और अर्शद पप्पू की दुश्मनी ने कराची को खून, अपहरण और धमाकों (Bomb Blasts) में झोंक दिया। कई इलाके ‘नो-गो ज़ोन’ बन गए, जहां पुलिस का जाना मौत को न्योता (Invite to Death) था।
2012: सरकार ने शुरू किया Operation Lyari
1 अप्रैल 2012 को साक़िब उर्फ साखी की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद हालात बिगड़ गए।26 अप्रैल को उजैर बलूच ने PPP नेता मलिक मोहम्मद खान की हत्या कराई। इसके बाद 27 अप्रैल को पुलिस ने उसका घर घेरा, लेकिन वह बच निकला।यहीं से ऑपरेशन का हिंसक दौर (Violent Phase) शुरू हुआ।
ऑपरेशन की कठिन शुरुआत (Tough Beginning)
ल्यारी की संकरी गलियों, भारी हथियारों—खासकर RPG—ने पुलिस को रोक दिया। कई टीमें घंटों फंसी रहीं।4 मई को हालात इतने खराब हुए कि 48 घंटे के लिए ऑपरेशन रोकना पड़ा।IG सिंध ने दावा किया कि तालिबान से जुड़े कुछ तत्व भी गैंग्स की मदद कर रहे थे, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई।
ऑपरेशन क्यों रुक गया?
ऑपरेशन राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference) के कारण अधूरा रह गया।नवाज शरीफ के प्रतिनिधि उजैर बलूच से मिले, और स्थिति और पेचीदा हो गई।अंततः बहुत कम गैंगस्टर्स गिरफ्तार हुए और 2012 का अभियान असफल माना गया।
2013: रेंजर्स ने संभाली कमान (Takeover by Rangers)
2013 में नई सरकार के बाद रेंजर्स को पूरे अधिकार मिले।7 सितंबर को टारगेटेड ऑपरेशन शुरू हुआ। हजारों संदिग्ध गिरफ्तार हुए, गैंग्स, की फंडिंग और हथियार सप्लाई लाइन (Supply Line) तोड़ी गई, और धीरे-धीरे गिरोह कमजोर पड़ने लगे।
कराची को हिला देने वाली दुश्मनी (Deadly Rivalry)
रहमान डकैत की मौत के बाद उजैर और अर्शद पप्पू की दुश्मनी कराची की हिंसा का सबसे बड़ा कारण बनी। अर्शद पप्पू की निर्मम (Brutal) हत्या ने शहर को और दहला दिया।
चौधरी असलम की शहादत (Martyrdom)
9 जनवरी 2014 को कराची पुलिस के मशहूर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट चौधरी असलम तालिबान के आत्मघाती हमले (Suicide Attack) में शहीद हो गए।उनकी मौत ने साफ कर दिया कि ल्यारी का अपराध केवल गैंगवार नहीं था—बल्कि आतंकवादी नेटवर्क भी इससे जुड़े थे।
बाबा लैडला का अंत (End of Baba Ladla)
2017 में रेंजर्स ने कुख्यात गैंग लीडर बाबा लैडला को मुठभेड़ में ढेर किया।उसे ऑपरेशन ल्यारी का टर्निंग पॉइंट (Turning Point) माना गया।
ल्यारी की असल तस्वीर (Real Picture)
कराची की जातीय और सामाजिक विविधता (Diversity)—बलूच, सिंधी, मुहाजिर, पश्तून, पंजाबी—ने इसे राजनीतिक प्रयोगशाला (Political Battleground) बना दिया।MQM और PPP के टकराव ने यहां गैंग्स को पनपने दिया।
आज ल्यारी में क्या बदला?
2013–17 के रेंजर्स ऑपरेशन ने ल्यारी को काफी हद तक शांत किया।नो-गो ज़ोन खत्म हुए, हिंसा कम हुई।लेकिन गरीबी (Poverty), बेरोजगारी (Unemployment), नशा और राजनीतिक खींचतान (Political Tussle) आज भी मौजूद है।यानी ऑपरेशन ने जख्म तो सी दिए, पर बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं हुई।
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