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Premanand Ji Maharaj: क्या मंदिर में आंसू आना शुभ या अशुभ? प्रेमानंद महाराज ने बताया इसका आध्यात्मिक रहस्य

नई दिल्ली: क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप मंदिर में भगवान के सामने खड़े हों और अचानक आंखों से आंसू बहने लगें? न कोई दुख, न कोई पीड़ा — फिर भी आंखें भीग जाती हैं। कई लोग इस भाव को अपनी कमजोरी समझ बैठते हैं, लेकिन प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज के अनुसार, यह रोना कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि एक दैवीय संकेत है।

प्रेमानंद महाराज का मानना है कि जब कोई भक्त सच्चे भाव से भगवान की मूर्ति को निहारता है, तब उसका मन, उसकी आत्मा और संपूर्ण अस्तित्व ईश्वर से जुड़ने लगता है। यही वह क्षण होता है जब व्यक्ति दुनियावी चिंताओं और मोह-माया से मुक्त हो जाता है।

"भगवान के चरणों में जब आंखें नम होती हैं, तब हृदय का अहंकार टूटता है और सच्चा समर्पण जन्म लेता है,"
— प्रेमानंद महाराज

कमजोरी नहीं, शक्ति का प्रतीक हैं ये आंसू
महाराज कहते हैं कि इन आंसुओं को कभी भी कमजोरी का प्रतीक नहीं समझना चाहिए। यह तो उस दिव्य प्रेम की अभिव्यक्ति है, जो भक्त के हृदय में वर्षों से संचित रहता है और ईश्वर के दर्शन होते ही स्वतः बह निकलता है।

ये आंसू दर्शाते हैं कि व्यक्ति सही मार्ग पर है, उसकी साधना सफल हो रही है और भगवान की कृपा उस पर बरस रही है। यह एक आध्यात्मिक अनुभूति है, जो हर किसी को नहीं मिलती।

मन को शांति देने वाली अनुभूति
संतों के अनुसार, जब कोई सच्चे भाव से भगवान के सामने सिर झुकाता है, तो वह अपने सारे बोझ, दुःख और अहंकार को त्याग देता है। ऐसे क्षणों में शरीर, मन और आत्मा के बीच का अंतर मिटने लगता है और यही वह पल होता है जब ईश्वर के प्रति प्रेम आंखों के माध्यम से बाहर आता है।

 

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