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Saiyaara Vaani Had Alzheimers: 'सैयारा' की वाणी की तरह कहीं आपको भी तो नहीं भूलने की बीमारी? ये 5 लक्षण मतलब शुरू हो चूका अल्जाइमर

नई दिल्ली: अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर, जो आमतौर पर 65 साल से पहले शुरू होता है, तेजी से युवाओं में भी देखने को मिल रहा है। मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस बीमारी की वजह से मरीज की मेमोरी धीरे-धीरे कमजोर होती है और कई मामलों में शॉर्ट-टर्म मेमोरी लॉस भी देखने को मिलता है।

फैमिली हिस्ट्री जरूरी नहीं, मगर जेनेटिक फैक्टर्स अहम
डॉ. दिब्या ज्योति महाकुल के अनुसार, अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर के लिए फैमिली हिस्ट्री होना जरूरी नहीं है, हालांकि ज्यादातर मामलों में पारिवारिक इतिहास पाया जाता है। कई बार जीन में बदलाव (जैसे APOE-e4 जीन म्यूटेशन) और ब्रेन में प्रोटीन के जमा होने से भी यह बीमारी हो सकती है। गंभीर सिर की चोट, ब्रेन इंफ्लेमेशन, हाई ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज और मोटापा भी इसके जोखिम को बढ़ाते हैं।

क्या जंक फूड भी है वजह?
यंग एज ग्रुप में अल्जाइमर बढ़ने की एक बड़ी वजह जंक फूड भी मानी जा रही है। डॉ. महाकुल के मुताबिक, "जंक फूड ज्यादा खाने से कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ता है, जिससे छोटी ब्लड वेसिल्स ब्लॉक हो जाती हैं। ब्लॉकेज के कारण ब्रेन स्ट्रोक और मेमोरी पर असर पड़ता है।"

शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस भी संभव
कई मरीजों में शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस देखने को मिलता है। डॉक्टरों के अनुसार, "कभी-कभी वर्किंग मेमोरी प्रभावित होती है, जिससे मरीज हाल की घटनाएं भूल सकता है, जबकि पुरानी यादें सुरक्षित रहती हैं। ब्रेन ट्यूमर की स्थिति में भी ट्यूमर हटाने के बाद कुछ समय के लिए मेमोरी लॉस बना रह सकता है।"

जांच और टेस्ट
अल्जाइमर की पुष्टि के लिए डॉक्टर आमतौर पर ये टेस्ट कराते हैं:

न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट

MRI या CT स्कैन

PET स्कैन

ब्लड टेस्ट

इलाज और थैरेपी
अभी तक अल्जाइमर का पूरा इलाज नहीं है, लेकिन कुछ दवाइयां और थैरेपी इसके असर को धीमा कर सकती हैं:

दवाइयां: डोनेपेजिल, रिवास्टिगमिन, गैलेंटामाइन, मेमेंटाइन, लेकेनेमैब-इरम

थेरेपी: कॉग्निटिव स्टिमुलेशन थेरेपी, मेमोरी गेम्स, फैमिली सपोर्ट और केयरगिविंग ट्रेनिंग

लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी
डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि खराब लाइफस्टाइल, अल्कोहल और स्मोकिंग से ब्रेन की ब्लड वेसिल्स ब्लॉक होती हैं, जिससे अल्जाइमर का खतरा बढ़ जाता है। हेल्दी डाइट, योग, एक्सरसाइज और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखना बेहद जरूरी है।

फिनलैंड, स्वीडन और जापान में जहां हेल्दी लाइफस्टाइल है, वहां अल्जाइमर के मामले कम हैं, जबकि अमेरिका और भारत जैसे देशों में इंडस्ट्रियलाइजेशन और मोटापे की वजह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
 

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